ढूंढ रहा था मैं धरती पे जन्नत,
दो बीघा ज़मीन, दो बरगद के पेड़,
कहा लोगों ने, चार क्यों नहीं ढूंढ़ते?
फिर खोजा मैंने, चार पहियों की गाड़ी,
चारों दिशाओं में ख़ुद को पहुँचाने की तरकीबें,
और लोगों ने दी,
सोलह कलाओं के पीछे भागने की नसीहत।
सोलह से बत्तीस, बत्तीस से चौंसठ,
पता नहीं और कितनी संख्याओं के चक्कर में,
फँस गया मैं।
सोचता हूँ, ढूंढ रहा था मैं, धरती पे जन्नत,
अब कोशिश करूँ, और ख़ुद की बना लूं ।
वहाँ न तो होगा दो का चक्कर
और ना ही होगी चार की धुनाई
बत्तीस बैठ कर अपनी बत्तीसी दिखाएगा,
और चौंसठ?
वह तो चार साल पहले सठिया चुका होगा।
वहां तो सिर्फ मैं होऊंगा,
और मेरी खुद की दुनिया।
खुद की जन्नत का मैं खुद का शहिनशाह।
छह की जगह नौ को देखता,
धरती और जन्नत के बीच,
उल्टा लटका हुआ,
बिल्कुल,
त्रिशंकु की तरह।
दो बीघा ज़मीन, दो बरगद के पेड़,
कहा लोगों ने, चार क्यों नहीं ढूंढ़ते?
फिर खोजा मैंने, चार पहियों की गाड़ी,
चारों दिशाओं में ख़ुद को पहुँचाने की तरकीबें,
और लोगों ने दी,
सोलह कलाओं के पीछे भागने की नसीहत।
सोलह से बत्तीस, बत्तीस से चौंसठ,
पता नहीं और कितनी संख्याओं के चक्कर में,
फँस गया मैं।
सोचता हूँ, ढूंढ रहा था मैं, धरती पे जन्नत,
अब कोशिश करूँ, और ख़ुद की बना लूं ।
वहाँ न तो होगा दो का चक्कर
और ना ही होगी चार की धुनाई
बत्तीस बैठ कर अपनी बत्तीसी दिखाएगा,
और चौंसठ?
वह तो चार साल पहले सठिया चुका होगा।
वहां तो सिर्फ मैं होऊंगा,
और मेरी खुद की दुनिया।
खुद की जन्नत का मैं खुद का शहिनशाह।
छह की जगह नौ को देखता,
धरती और जन्नत के बीच,
उल्टा लटका हुआ,
बिल्कुल,
त्रिशंकु की तरह।