Friday, August 12, 2011

मेरी कश्ती

कहते हैं व़ोह कि मेरी कश्ती डूबने वाली है,
कश्तियो  का क्या है, व़ोह तो डूबती ही रहती हैं !

कभी कश्ती से सूरज को डूबते देखो
नीले आसमान से जब भरे समंदर में सूरज डूबता है,
ऐसा लगता है , उसके पीछे मैं  भी जाकर डूब जाऊं  
और समंदर की गहराई में गोते लगाऊं
आखिर सूरज के पीछे कौन नहीं भागना चाहता?

मैंने पूछा कश्ती से - अगर मैं गोते  लगाऊंगा ,
तो  तुम्हारा  क्या होगा?
भरे समंदर में अगर तुम  भी डूब गयी तो!

कश्ती मुस्कराई, और कहा मुझसे
कश्तियो  का क्या है, व़ोह तो डूबती ही रहती हैं !
तुम जाओ, और सूरज को गोते लगाना सिखाओ

(A few lines of babble dedicated to my own kashti, who has always let me dive,
wherever I chose to...)

No comments:

Post a Comment